स्वच्छता में मुख्यमन्त्री शिवराज का गाँव फिसड्डी

17 Oct 2015
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राजु कुमार

 

मध्यप्रदेश में चल रहे स्वच्छता अभियान की तारीफ प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 19 जुलाई को ‘मन की बात’ में की, तो स्वच्छता को लेकर मध्यप्रदेश ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान में मध्यप्रदेश के हरदा जिले में चल रहे नवाचार ‘ऑपरेशन मल युद्ध’ और ‘ब्रदर नम्बर वन’ अभियान की तारीफ की। उन्होंने कहा, ‘‘हरदा जिले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम ने एक ऐसा काम शुरू किया जो मेरे मन को छू गया और मुझे बहुत पसन्द है। हरदा ने स्वच्छ भारत अभियान को नया मोड़ दिया है और पूरे जिले में एक अभियान चलाया है ‘ब्रदर नम्बर वन’ यानी वो सबसे उत्तम भाई जो अपनी बहन को रक्षाबन्धन पर एक टॉयलेट बनाकर भेंट करे।’’

 

प्रधानमन्त्री की इस तारीफ एवं हरदा में जोर-शोर से चल रहे स्वच्छता अभियान के बावजूद मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री का अपना गाँव जैत आज तक खुले में शौच से मुक्त नहीं हो पाया है। सीहोर जिले के बुदनी विकासखण्ड के जैत पंचायत में स्वच्छता अभियान फिसड्डी साबित हो रहा है। शासन एवं स्वच्छता अभियान को सहयोग कर रही तकनीकी संस्थाओं की अपेक्षा थी बीते 2 अक्टूबर को पूरे बुदनी को खुले में शौच से मुक्त बनाकर प्रदेश का पहला खुले में शौच से मुक्त विकासखण्ड बनाया जाए, पर ऐसा नहीं हो पाया। 2 अक्टूबर को बुदनी के कई पंचायत खुले में शौच से मुक्त हो गए है, पर जैत में लोग खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं। आश्चर्य की बात है कि जैत को 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल के हाथों निर्मल ग्राम का पुरस्कार मिल चुका है, जिसे खुले में शौच से मुक्ति एवं गाँव में कचरे का बेहतर प्रबंधन करने पर दिया जाता है, पर इन दोनों ही मामलों में वर्तमान में गाँव की स्थिति खराब है।

 

जैत के ग्रामीण स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार एवं शासन की लापरवाही के शिकार है। जिन लोगों ने स्वयं के खर्च पर शौचालय बनवाए हैं, उनके नाम पर राशि निकाल ली गई है और उन्हें पैसा नहीं दिया जा रहा है। कई ऐसे लोग भी हैं जिनके नाम पर राशि पहले ही निकाल ली गई है, पर उनके शौचालय नहीं बने हैं। एक साल पहले कई गरीब परिवारों से गड्ढे खुदवा लिए गए थे, पर उन पर आज तक शौचालय का निर्माण नहीं हो पाया है। कई गड्ढे अब भर चुके हैं, यानी शौचालय बनते हैं, तो लोगों को दोबारा मेहनत करनी पड़ेगी।

 

जैत के ग्रामीण स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार एवं शासन की लापरवाही के शिकार है। जिन लोगों ने स्वयं के खर्च पर शौचालय बनवाए हैं, उनके नाम पर राशि निकाल ली गई है और उन्हें पैसा नहीं दिया जा रहा है। कई ऐसे लोग भी हैं जिनके नाम पर राशि पहले ही निकाल ली गई है, पर उनके शौचालय नहीं बने हैं।

 

हेमराज केवट कहते हैं, ‘‘गुरूजी (पंचायत सचिव) और मास्साब (मुख्यमन्त्री के भाई एवं तत्कालीन सरपंच के पति) के कहने पर एक साल पहले 40 से ज्यादा लोगों ने शौचालय के लिए गड्ढे खुदवाए थे। पर एक साल तक कुछ नहीं हुआ। अब कुछ लोगों के शौचालय बन भी रहे हैं, तो कम सामग्री वाले एक गड्ढे का शौचालय बनवा रहे हैं।’’ तोलाराम केवट कहते हैं कि उन्हें काम छोड़ कर गड्ढे खोदने के लिए कहा गया था। उस समय खेतों में काम चल रहा था। विधवा राधा बाई कहती हैं कि शौचालय नहीं होने से उन्हें अपने दोनों बच्चों के साथ शौच के लिए खेतों में जाना पड़ता है।

 

सुनील चौहान कहते हैं, ‘‘मैंने सचिव के कहने पर स्वयं के खर्च पर शौचालय बनवा लिया, अब वे कहते हैं कि पैसे नहीं मिलेंगे। निर्मल वाटिका में मेरे नाम से शौचालय था, पर मेरे भाई के यहाँ बनवा दिया, जबकि उसका नाम ही नहीं था। कई ऐसे लोगों को भी स्वच्छ भारत मिशन से शौचालय बनवा रहे हैं, जिनके निर्मल वाटिका से शौचालय बनवाए थे। मुझसे कहते हैं कि जो बनता है, कर लो।’’ गाँव की मुन्नी बाई के नाम से स्वच्छ भारत मिशन के तहत 12 हजार रुपए निकल गए, पर उनके यहाँ शौचालय नहीं बना है। कई लोगों से कहा गया कि पैसे बाद में मिल जाएंगे, अभी अपने पैसे से शौचालय बनवा लो, पर उन्हें पैसे नहीं मिल रहे हैं, जबकि उनके नाम पर राशि निकाली जा चुकी है। सुनील का कहना है कि कई ऐसे लोगों के नाम पर स्वच्छ भारत मिशन से राशि निकाली गई है, जिन्होंने स्वयं के खर्च से पहले ही शौचालय बनवा लिए थे। वर्तमान में गाँव के 50 से ज्यादा परिवार शौच के लिए बाहर जाते हैं, जिनमें से अधिकांश कमजोर तबके के हैं। उन्होंने बताया कि गाँव में भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि समग्र आईडी बन जाने के बाद भी गरीबों को वह नहीं दिया जा रहा है। उसके लिए लोगों से रुपए माँगे जा रहे हैं।

 

मध्यप्रदेश में स्वच्छ भारत अभियान से पहले 25 सितम्बर 2014 को स्वच्छ मध्यप्रदेश अभियान एवं उसके पहले मर्यादा अभियान चलाया गया था। प्रदेश में खुले में शौच को महिलाओं की मर्यादा से जोड़कर प्रचारित किया जा रहा है। इन अभियानों के बावजूद 2011 में निर्मल ग्राम घोषित जैत में खुले में शौच और गलियों में बिखरे कचरे एवं कीचड़ स्वच्छता अभियान को मुँह चिढ़ा रहे हैं।

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