स्वच्छता की दिशा में सही कदम

8 Mar 2016
0 mins read

 

महेंद्र अवधेश

 

बीती 21 फरवरी को छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 104 वर्षीय कुँवर बाई का सम्मान उनका पैर छूकर किया। कुँवर बाई की उपलब्धि यह है कि उन्हें जब पता चला कि देश के प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन इसलिए शुरू किया हे, ताकि हर घर में शौचालय हो और किसी बहन बेटी बहू को खुले में शौच के लिए न जाना पड़े, तो उन्होंने अपनी बकरियाँ बेचकर घर में दो शौचालय बनवा दिए। कुँवर बाई का कदम बताता है कि यदि कोई राष्ट्र प्रमुख दिल से अपील करे, तो दूर दूर तक उसका असर होता है और जनता उसे सिर आँखों पर लेती है। 15 अगस्त, 2014 को लाल किले के प्राचीर से बतौर प्रधानमंत्री अपने पहले भाषण में नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता और शौचालय के महत्व पर चर्चा के बाद दो अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर स्वच्छ भारत मिशन का ऐलान करके देश को जो संदेश दिया था, वह रंग ला रहा है। देश स्वच्छता का महत्व समझ रहा है और अपनी जिम्मेदारी के प्रति दिनोंदिन जागरूक हो रहा है। अभी हाल में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के हल्दौर ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत मिठनपुर कुँवर ने खुले में शौच करने के आरोप में माँ-बेटे पर पांच-पांच सौ रुपये का अर्थदंड लगाया है। गाँव में चल रहे विकास कार्यों का निरीक्षण करने पहुँचे जिलाधिकारी वीके आनंद से कुछ लोगों ने शिकायत की कि घर में शौचालय होने के बावजूद उक्त माँ-बेटे खुले में शौच करते हैं। इस पर जिलाधिकारी ने प्रधान सतेंद्र कुमार को निर्देश दिए कि पंचायती राज एक्ट की धारा 97 एवं 100 के तहत आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। सतेंद्र का कहना है कि गांव के सभी 188 घरों में शौचालय हैं, जिनमें आरोपियों का घर भी शामिल है। जबकि आरोपियों ने सफाई दी कि सरकार की ओर से बनवाए गए शौचालय क्षतिग्रस्त होने की वजह से उन्हें खुले में शौच के लिए जाना पड़ा।

 

इसी तरह वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए जयापुर गांव में खुले में शौच करने पर पांच सौ रुपये का जुर्माना लगाने का ऐलान किया गया है। नवनिर्वाचित प्रधान नारायण पटेल का कहना है कि सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गाँव के ज्यादातर घरों में शौचालय बनवाए जा चुके हैं, लेकिन फिर भी लोग खुले में शौच करने से बाज नहीं आ रहे हैं। पंचायत अब ऐसे लोगों पर अर्थदंड लगाएगी, क्योंकि इस गाँव से देश के प्रधानमंत्री का नाम जुड़ा है, इसलिए खुले में शौच हमारे लिए शर्म की बात है। वहीं गोंडा जिले में सजग ग्रामीणों की एक अनोखी मुहिम लोगों को खुले में शौच से रोक रही है। खानपुर, मिझौरा, पूरे संगम एवं सैदापुर यानी चार गांवों में चल रही इस मुहिम के तहत टोकाटोकी टोलियां गठित की गई हैं, जो खुले में शौच करने वालों को फूलों की माला पहना कर उन्हें आगाह कर रही हैं कि यह ठीक नहीं है और वे भविष्य में ऐसा न करें। जिला पंचायती राज अधिकारी आरएस चौधरी कहते हैं कि ऐसा शौचालय के नियमित इस्तेमाल के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए किया जा रहा है, जिसका असर दिख रहा है। हर टोली सुबह पाँच बजे और शाम सात बजे इलाके का चक्कर लगाती है और स्वच्छता का संदेश देती है। मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में 10 हजार बच्चों की वानर सेना जगह-जगह स्वच्छता की अलख जगा रही है। यह सेना खुले में शौच करने वालों को सीटी बजा बजाकर शर्मिंदा कर रही है। बकौल जिलाधिकारी पी नरहरि, प्रशासन ने एक सितंबर, 2015 से इंदौर को खुले में शौच से मुक्त कराने का अभियान छेड़ रखा है। इसके तहत ग्रामीण इलाकों में बीते चार माह के दौरान सरकारी अनुदान देकर 25 हजार से ज्यादा शौचालय बनवाए जा चुके हैं, जबकि 15 हजार शौचालय अन्य स्रोतों से बनवाए गए। नरहरि के अनुसार, जिले की 312 ग्राम पंचायताें के 610 गांवों के लगभग सभी घरों में शौचालय बनवाए जा चुके हैं।

 

दरअसल, खुले में शौच की आदत एक देशव्यापी समस्या है। गौरतलब है कि बीती छह जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में सार्वजनिक शौचालयों की कमी पर चिंता जाहित करते हुए टिप्पणी की कि यह बेहद शर्मनाक स्थिति है। अदालत ने नगर निगम, रेलवे, दिल्ली छावनी बोर्ड एवं अन्य एजेंसियों से पूछा कि क्या उन्होंने पर्याप्त शौचालयों का निर्माण किया है? न्यायमूर्ति बीडी अहमद एवं संजीव सचदेव की यह दो सदस्यीय खंडपीठ 2007 में एक एनजीओ द्वारा दायर की गई उस याचिका की सुनवाई कर रही थी, जिसमें सिर पर मैला ढोने वालों के पुनर्वास की मांग की गई थी। अदालत ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह हलफनामा दाखिल करके बताए कि क्या रोजगार निषेध, मैला ढोना एवं पुनर्वास अधिनियम 2013 के प्रावधान लागू किए जा रहे हैं या नहीं? अदालत ने कहा कि सभी पक्ष अपनी रिपोर्ट में यह भी बताएं कि सार्वजनिक शौचालयों में लोगों से शुल्क लेने संबंधित उनकी योजना क्या है? आज से लगभग डेढ़ साल पूर्व जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 60 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं, जबकि पूरे विश्व में यह संख्या करीब 100 करोड़ है। नौ मई, 2014 को स्विट्जरलैंड की राजधानी जिनेवा में प्रोगेस आॅन ड्रिंकिंग वाटर एंड सैनिटेशन 2014 शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व में भारत एक ऐसा देश है, जहाँ सबसे ज्यादा लोग खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं। डब्ल्यूएचओ एवं यूनिसेफ द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई यह रिपोर्ट कहती है कि विश्व भर में खुले में शौच करने वाले सौ करोड़ लोगों में से 82 फीसद लोग केवल 10 देशों में रहते हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।

 

आजादी के बाद लगभग पाँच दशकों तक हमारी विभिन्न सरकारें इस दिशा में कान में तेल डाले बैठी रहीं। हाँ, 2012 में संप्रग 2 के शासनकाल में निर्मल भारत योजना के रूप में एक पहल जरूर हुई और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश को यहां तक कहना पड़ा कि देश को मंदिरों से ज्यादा शौचालयों की जरूरत है, लेकिन अफसोस कि जनहित से लगातार दूर हो रही राजनीति ने तब जयराम रमेश को ही अपने निशाने पर ले लिया था। हमारी विभिन्न सरकारों ने स्वच्छता और शौचालय की जरूरत को किस कदर नजरअंदाज किया, इसका प्रमाण यह उदाहरण है। 1997 का अक्टूबर महीना था। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय भारत के दौरे पर थीं। एक दिन अलस्सुबह वह अपनी कार से राजघाट स्थित महात्मा गांधी के समाधि स्थल की ओर रवाना हुर्इं। रास्ते में एक जगह उन्होंने देखा कि कई महिलाएं सड़क के किनारे एक लाइन से बैठी हैं। जैसे ही महारानी की कार उन तक पहुँचने को हुई, तो उक्त महिलाएं उठकर खड़ी हो गर्इं, लेकिन उन्होंने अपने वस्त्रों का निचला हिस्सा घुटने के समीप पकड़ रखा था। महारानी ने अपने साथ बैठे भारत के तत्कालीन ब्रिटिश हाई कमिश्नर सर डेविड गोर बूथ से पूछा, व्हॉट दे आर डूइंग? जवाब मिला, दे आर इजिंग आउट। राजघाट के बाद महारानी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल से मिलने पहुँची और उन्होंने यह बात साझा की।

 

(लेखक सामाजिक विषयों के जानकार हैं)

 

साभार - दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण, 1 मार्च, 2016
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading