स्वच्छता दूत से बने सरपंच

22 Oct 2015
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राजु कुमार

 

समुदाय आधारित समग्र स्वच्छता से गहरे जुड़ाव एवं गाँव को खुले में शौच से मुक्त कराने का दृढ़ संकल्प लेकर काम करने का परिणाम थूना कलाँ ग्राम पंचायत के 28 वर्षीय अखिलेश मेवाड़ा के लिए सुखद रहा है। दो सालों तक स्वच्छता दूत के रूप में काम करने के बाद अब वे सरपंच के रूप में पंचायत का विकास कर रहे हैं। मेवाड़ा कहते हैं, ‘‘सरपंच बनने के बाद लग रहा है कि लोगों ने मुझे बड़ी जिम्मेदारी दी है और अब मुझे पहले से ज्यादा काम करना पड़ेगा। गाँव में नल-जल योजना, पानी का बेहतर प्रबंधन और सूखे एवं गीले कचरे का प्रबंधन कर गाँव को स्वच्छता के ऊँचे मानकों पर खरा उतारने की कोशिश करना है।’’

 

मेवाड़ा का सरपंच के रूप में निर्वाचित होना विकास की राजनीति की मिसाल है। सरपंच बनने से पहले मेवाड़ा पंचायत में दो सालों से स्वच्छता दूत के रूप में कार्य कर रहे थे। मेवाड़ा कहते हैं, ‘‘मैं चुनाव की घोषणा से पहले तक चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं था क्योंकि चुनाव प्रचार एवं चुनाव प्रबंधन का मुझे अनुभव नहीं था, पर ग्रामीणों द्वारा प्रेरित करने पर मैं इसके लिए तैयार हुआ।’’

 

राजधानी भोपाल से लगभग 40 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के थूना कलाँ के 566 परिवारों में अधिकांश पिछड़े एवं अनुसूचित समुदाय के हैं। पानी की समस्या और आबादी के लिहाज से बड़ा गाँव होने के कारण थूना कलाँ को खुले में शौच से मुक्त कराना एक चुनौती थी। यहाँ के पूर्व सरपंच एवं सचिव गाँव को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिए प्रयासरत थे। इस बीच उन्हें अखिलेश मेवाड़ा का स्वच्छता दूत के रूप में साथ मिल गया और फिर सामूहिक प्रयासों की बदौलत 2013 के बाद 265 परिवारों ने शौचालय बनाकर गाँव को खुले में शौच से मुक्त करा दिया।

 

यूनिसेफ, मध्यप्रदेश के कार्यक्रम प्रबंधक मनीष माथुर कहते हैं, ‘‘समुदाय आधारित समग्र स्वच्छता में समुदाय के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं स्वच्छता दूत की भूमिका महत्वपूर्ण है। स्वच्छता दूत का सरपंच जैसे महत्वपूर्ण पद पर निर्वाचन यह दर्शाता है कि उन्होंने गाँव को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिए महिलाओं एवं बच्चों के साथ-साथ पूरे गाँव को अभियान से जोड़ने का प्रयास किया था।’’

 

गाँव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की वजह से मेवाड़ा बच्चों में ज्यादा लोकप्रिय थे। उन्होंने एम.कॉम. के बाद अपना व्यवसाय बदलते हुए भोपाल में ठेकेदारी का काम शुरू कर दिया। शहर में रहने के बावजूद उनका गाँव से सम्पर्क बना हुआ था और वे गाँव के विकास कार्यों में अपने विचार पंचायत को देते रहते थे। मेवाड़ा की ग्रामीण विकास में रुचि देखकर पंचायत सचिव ने निर्मल भारत अभियान के दरम्यान उनसे स्वच्छता दूत बनने का आग्रह किया, जिसे मेवाड़ा ने स्वीकार कर लिया। मेवाड़ा याद करते हैं, ‘‘मैंने सबसे पहले ट्यूशन वाले बच्चों से बात की। उनकी टोलियाँ बनाई और स्वच्छता पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम, जागरूकता रैली, शर्मिंदगी रैली के साथ-साथ पालकों से बातचीत की। महिलाओं और किशोरियों की इज्जत की बात करने पर महिलाओं ने साथ देना शुरू किया, जिससे हमें सफलता मिली।’’ मेवाड़ा के साथ काम कर चुके स्कूली बच्चे धीरज, विष्णु प्रजापति एवं शुभम् बताते हैं कि वे सुबह और शाम शौच वाली जगहों पर बच्चों की टोलियाँ बनाकर निगरानी करते थे।

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