नवाचारों में युवाशक्ति का कमाल

25 Sep 2015
0 mins read

मनोहर कुमार जोशी

 

देश की युवाशक्ति स्वच्छ भारत मिशन से ज्यादा प्रभावित है। इनमें स्वच्छता के प्रति चेतना, जागृति एवं नवाचारों की ललक अन्य के मुकाबले कहीं अधिक है। मार्च 2015 में राष्ट्रपति भवन में सम्मानित एवं वहाँ बतौर मेहमान रहने वाले राजस्थान के दो सगे भाईयों एवं तमिलनाडु की प्रियंका मथिक्षरा में भी यह दिखाई दी।

 

राजस्थान में सिरोही के दो सगे भाईयों मुकुल एवं दीप्तांशु मालवीय ने अपने नवाचार में रैपर उठाने वाला उपकरण बनाया है। रैपरपिकर मशीन बनाने का विचार उनके दिमाग में उस समय आया जब इन दोनों भाईयों ने बस स्टैण्ड पर झाड़ू लगाते एक व्यक्ति को बार-बार झुककर वहाँ बिखरे पाउच, कागज के टुकड़े और वेफर्स के खाली पैकेट को उठाते देखा। इन्हें लगा कि ऐसे कचरे को उठाने के लिए हर बार झुकना उसके लिए कितना मुश्किल होता होगा। यदि कोई स्वचालित मशीन या उपकरण बना लिया जाए तो श्रमसाध्य कार्य आसान हो सकता है और उन्होंने बना ली रैपरपिकर मशीन।

 

बारहवी कक्षा के मुकुल एवं नौवीं कक्षा के दीप्तांशु ने बताया की स्टील बाॅडी की यह मशीन बनाकर उन्होंने गत वर्ष अक्टूबर में राष्ट्रीय नव प्रवर्तन प्रतिष्ठान, अहमदाबाद/ एनआईएफ को भेजी थी। वहाँ से हमारा नाम राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किए जाने वालों के लिए भेजा गया तथा बाद में इसके लिए हमें चुन लिया गया। इसी वर्ष मार्च में राष्ट्रपति से अवार्ड मिलने के बाद वोलटास एवं अन्य कम्पनियों ने हमारी मशीन को देखा। एमसीआई म्युनिसिपेल्टी काॅरपोरेशन आॅफ इंडिया ने हमारे से डील भी की है। इन मशीनों की बिक्री पर हमें रॉयल्टी मिलेगी।

 

देश में बड़े पैमाने पर मौजूद युवाशक्ति नवाचारों में भी अपना कमाल दिखा रही है। राजस्थान के दो भाईयों ने स्वस्थ भारत मिशन से प्रभावित होकर ‘रैपर पिकर’ मशीन बनाई है तो वहीं चेन्नई की प्रियंका ने ‘सुपर स्टाॅकर 3सी अल्ट्रा माॅडल कूड़ादान’ बनाया है। गाँवों के युवाओं के ऐसे ही कुछ नवाचारों (जुगाड़ों) की चर्चा प्रस्तुत लेख में की गई है जिससे कई छोटी-मोटी समस्याओं से आसानी से निपटा जा सकता है।

 

मालवीय बंधु कहते हैं कि लोक स्नेक्स खाते हैं, वेफर्स, चॉकलेट, बिस्कुल, फ्रूट केक, पानी के पाउच आदि का इस्तेमाल करते हैं और उनके रैपर्स को इधर-उधर डाल देते हैं। इस कचरे को बाद में हाथ से उठाना पड़ता है। अभी तक बाजार में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इस काम को स्वचालित ढंग से कर सके। मोटरचालित हमारी यह मशीन इस कार्य को बखूबी करती है जो सफाई के लिए उपयोगी साबित होगी। आठ से दस हजार रुपये निर्माण लागत वाली यह मशीन स्वच्छ भारत मिशन में अपना कमाल दिखा सकती है। वे कहते हैं- सफाई के लिए छोटे-छोटे कार्य कारगर हो सकते हैं। राष्ट्रीय नव प्रवर्तन प्रतिष्ठान द्वारा असंगठित क्षेत्र के लोगों को आगे लाने की जानकारी हमें नहीं थी। यह जानकारी हमें एक समाचार-पत्र के जरिए मिली। एनआईएफ बारहवीं तक के छात्रों के अलावा युवाओं एवं किसानों द्वारा किए जाने वाले नवाचार और विचारों को, जो राष्ट्र की प्रगति एवं विकास में लाभदायक हो, उसे सबके सामने लाता है।

 

 

इसी तरह तमिलनाडु में चेन्नई की प्रियंका मथिक्षरा ने सुपर स्टाॅकर 3सी अल्ट्रा माॅडल कूड़ादान बनाया है। उसने बताया कि सुपर स्टाॅकर 3सी एक नव प्रवर्तित सार्वजनिक कूड़ादान है जिसमें तीन माॅड्यूल होते हैं। सौर ऊर्जा चालित कचरा तोड़ने वाला लेवल कॅम्युनिकेटर और सौर ऊर्जा चालित स्ट्रीट लाइट। वह बताती हैं कि सौर ऊर्जा चालित कचरा तोड़ने वाले माॅड्यूल में कचरे को तोड़कर सघन किया जाता है ताकि ज्यादा कूड़ा जमा किया जा सके। इससे ज्यादा कूड़ेदान रखने की जरूरत दूर होती है। इसमें कैंची उठाने वाली यन्त्र प्रणाली और एक वाइपर मोटर होती है।

 

लेवल कम्युनिकेटर माॅड्यूल में एक जीएसएम उपकरण लगा होता है जो पास के कचरा निपटान स्थल को कूड़ेदान के पहले से तय स्तर तक भर जाने के बारे में एक संदेश के रूप में जानकारी भेज सकता है। फिर कचरा निपटान स्थल के कामगार इसके भर जाने पर तुरन्त आकर इसे ले जा सकते हैं और कचरा बिखरने से रोकते हैं।

 

पन्द्रह वर्षीय प्रियंका के अनुसार इसमें सौर ऊर्जा चालित स्ट्रीट लाइट भी शामिल है। इसमें कूड़ेदान के आस-पास होने वाली गतिविधियों को दर्ज करने के लिए एक सीसीटीवी लगाने और लोगों को मुफ्त में वाईफाई देने के लिए एक वाईफाई प्रणाली जोड़ने जैसी अन्य विशेषताएँ शामिल की जा सकती हैं। यह उपकरण कचरे को तोड़कर उसे इसके मूल आकार से एक तिहाई जगह में समाहित कर लेता है और इस तरह बहुत सारी जगह बचाता है तथा कूड़ेदानों की संख्या कम करता है। कूड़ेदानों को खाली करने में लगने वाला समय, कूड़े-कचरे को ले जाने में लगने वाले ईंधन की लागत व श्रम आदि बचाता है। उन्होंने कहा कि इस कार्य के लिए उसे यहाँ के एक इंजीनियर ने प्रेरित किया और उनके सहयोग से अभिनव उपकरण को मूर्त रूप दिया गया।

 

दूसरी ओर, महाराष्ट्र के शांतनु पाठक ने महिलाओं के लिए गर्भावस्था में देखभाल के लिए एक प्रणाली विकसित की है जो उच्च जोखिम वाली गर्भावस्थाओं का पूर्वानुमान लगाती है और उनकी पहचान करती है। इस प्रणाली में हीमोग्लोबिन, रक्तचाप, मूत्र प्रोटीन, मूत्र शर्करा, गर्भस्थ शिशु की हृदय गति, वजन, लम्बाई आदि की डिजिटल जाँच करने के लिए सौर ऊर्जा से चालित एक पोर्टेबल व समेकित तथा बिना चीरा लगाए जाँच करने वाला किट है। साथ ही जाँच के आँकड़े दर्ज करने, गर्भवती स्त्रियों को शिक्षित करने व जोड़ने के लिए एक मोबाइल एप्लीकेशन है। इसमें दूरदराज के इलाकें में स्थित रोगी का विश्लेषण करने के लिए डाॅक्टरों के लिए एक इंटीग्रेटेड वेब एप्लीकेशन भी है।

 

शांतनु पाठक द्वारा माताओं की देखभाल के लिए तैयार किए गए इस किट का इस्तेमाल चिकित्सकों द्वारा की जाने वाली आठ प्रकार की जाँचों के लिए किया जा सकता है जिसमें गर्भधारण की अवधि के दौरान होने वाली डायबिटीज, गर्भस्थ शिशु की वृद्धि और तनाव, खून की कमी व हाइपरटेंशन का शीघ्र पता लग जाता है तथा गर्भवती महिला की नियमित देखभाल कर एक क्लिक में डाॅक्टर को पर्याप्त आँकड़े प्रदान करता है।

 

पायलट प्रोजेक्ट के अध्ययन में दिखाया गया कि ग्रामीण शहरी झुग्गी वाले क्षेत्रों में यह नवप्रवर्तन अनेक गर्भवती स्त्रियों तक स्त्री रोग विशेषज्ञों की पहुँच बनाने की क्षमता में सुधार ला सकता है तथा अनेक गर्भावस्थाओं का प्रबंधन कर सकता है व उन्हें समय रहते गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर सकता है। गर्भावस्था सम्बन्धी जटिलताओं के चलते प्रतिदिन हजारों स्त्रियों की मृत्यु हो जाती है और इसमें से 60 प्रतिशत मौतें उच्च जोखिम वाली गर्भावस्थाओं के कारण होती हैं। यदि जटिलताओं का समय रहते पता लग जाए और उचित देखभाल की जाए तो इनमें से 90 प्रतिशत स्त्रियों की जानें बचाई जा सकती हैं।

 

तमिलनाडु के चेन्नई के आनन्द टी एस और उनके साथियों ने असमतल भू-भूभाग के लिए कृत्रिम घुटना विकसित किया है। इन छात्रों के मुताबिक दुनिया में सबसे सामान्य रूप से होने वाले अंग विच्छेदों में ट्रांसफेमोरल या घुटने से ऊपर तक का अंग सामान्य अंगों में से एक है, जिसमें पैर अक्सर जाँघ से काटा जाता है। ऐसे अंग विच्छेद व्यक्ति को खड़े होने, चलने के लिए एक कृत्रिम अंग/प्रोस्थेसिस की आवश्यकता होती है। अभी मौजूद देसीय प्रोस्थेटिक घुटने में एक सामान्य हिज जोड़ का इस्तेमाल होता है जो चलते समय असमतल सतहों पर स्थिरता प्रदान करने के लिए सामान्यता लाॅक्ड या बंद रहता है। फिर भी इसका इस्तेमाल करने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि इससे चलते समय पूरे पैर को नितंब से सामने की ओर फेंकना होता है। हिज जोड़ वाले घुटने के अनेक फायदे हैं क्योंकि इसकी घुर्णन करने वाली एकाधिक धुरियाँ उपयोगकर्ता को उनकी बची हुई मांसपेशियों से घुटने पर बेहतर नियंत्रण करने में समर्थ बनाती हैं और एकल धुरी की तुलना में पंजे एवं जमीन के बीच उचित दूरे बनाए रखती हैं।

 

इस रचना में एक पूरी तरह से देसीय घुटने को विकसित किया गया है जो स्थिरता तथा पैर व जमीन के बीच उचित दूरी की दोहरी जरूरतों को ध्यान में रखती है ताकि असमतल जगहों पर व्यक्ति को लड़खड़ाने या गिरने से बचाया जा सके। इस डिजाइन में एक सामान्य घर्षणकारी झुलाने वाले नियन्त्रण को भी शामिल किया गया है जो पैर को सहजता से आगे बढ़ाता है और अलग-अलग चाल से चलने के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधा देता है।

 

राष्ट्रीय नव प्रवर्तन प्रतिष्ठान मौलिक विचारों एवं परिकल्पनाओं को भी तरजीह देता है। इसी क्रम में एक खेतिहर मजदूर की बेटी की परिकल्पना भी सामने आयी है जो कुछ इस तरह है-

 

स्कूल सरकारी हो या निजी। प्रार्थना सभा से लेकर क्लास पूरी होने तक घंटी बजाने का काम स्कूल के कर्मचारी या फिर छात्रों को ही करना पड़ता है और इसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है लेकिन अब एक खेतिहर मजदूर की बेटी सोनिया सैनी का आइडिया रंग लाया है जो स्कूलों में प्रार्थना सभा एवं कालांश पूरा होने पर बजाई जाने वाली घंटी से निजात दिलाएगा।

 

सोनिया हरियाणा के यमुना नगर जिले की जगाधरी तहसील के दामला गाँव के रघुसिंह की बेटी है और वह इसी गाँव के वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में दसवी की छात्रा है। इस होनहार छात्रा से उसकी परिकल्पना से स्कूल में बजाई जाने वाली घंटी के विकल्प के बारे में पूछने पर उसने कुछ इस तरह बताया कि बात पिछले साल की है। यहीं के प्रगतिशील किसान एवं खेतों के वैज्ञानिक के रूप में सम्मानित धर्मवीर कम्बोज हमारे स्कूल में नवाचारी बच्चों को पुरस्कृत करने आए थे। इस दौरान मैंने घंटी के विकल्प की परिकल्पना उनके सामने रखी। स्कूल चालू होने से छुट्टी होने तक घंटी बजाने का काम आगे-पीछे होता रहता था। घंटी बजाने में पाँच मिनट भी आगे-पीछे होने पर एक कालांश छोटा हो जाता था। और इसका नुकसान हमें ही उठाना पड़ता था। मेरे पास घंटी के विकल्प की परिकल्पना थी लेकिन इसे साकार करने के लिए पैसे नहीं थे। श्री कम्बोज को मेरी यह परिकल्पना अच्छी लगी तथा उन्होंने मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक सहयोग किया और हमने एक हूटर बनाया जो आज स्कूल में घंटी का काम कर रहा है। मानव सहायता रहित यह हूटर निर्धारित समय पर पन्द्रह सेकेण्ड बजता है और इसकी आवाज एक किलोमीटर तक सुनाई देती है। इस हूटर का निर्माण श्री कम्बोज की वर्कशाॅप में किया गया जिसमें सोलर सिस्टम यूपीएस और दो टाईमर लगाए गए। हूटर मशीन की क्षमता 40 मिनट की है जबकि स्कूल समय में इसकी क्षमता का बहुत कम, कुल मिलाकर मात्र चार मिनट ही उपयोग होता है। वह बताती हैं कि मुख्यमन्त्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने गत पाँच मार्च को दामला में इस उपलब्धि के लिए मेरी प्रशंसा करते हुए मुझे प्रोत्साहित किया है। मुख्यमन्त्री ने उनके साथ आए मन्त्रियों और कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों को मेरी मदद एवं सहयोग के लिए भी कहा। पाॅलिटेक्नीक काॅलेज के राजेश गर्ग एवं राजेश शर्मा ने मेरी हर सम्भव मदद की है।

 

सोनिया ने कहा- राष्ट्रपति भवन में खेतों के वैज्ञानिक के रूप में सम्मानित श्री कम्बोज मुझे, मेरी माँ निर्मला देवी सहित स्कूल के अन्य बच्चों, प्रिंसिपल और पाॅलिटेक्नीक काॅलेज के छात्रों को अपने साथ राष्ट्रपति भवन ले गए। राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में नवाचारों की प्रदर्शनी में मेरी परिकल्पना वाली स्कूल की घंटी का विकल्प भी प्रदर्शित किया गया था जिसे काफी सराहना मिली तथा पसंद किया गया। इसके लिए मुझे प्रशंसा-पत्र भी मिला है।

 

मेरी माँ एवं पिताजी खेतों में मजदूरी करते हैं। चार भाई हैं इनमें संदीप मुझसे बड़ा है। दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद आर्थिक तंगी के कारण उसे भी पढ़ाई छोड़ मेहनत-मजदूरी पर लगना पड़ा। मैंने सोचा अब मैं भी आगे नहीं पढ़ पाऊँगी तथा घर वाले मेरी शादी कर देंगे। लेकिन स्कूल की घंटी ने मेरी हौसला अफजाही की है तथा दृढ़ इच्छाशक्ति का संचार हुआ है जिससे आगे बढ़ने की राह आसान दिखाई दे रही है। अपने पैरों पर खड़ा हो सकने का विश्वास जगा है।

 

घंटी का विकल्प यह सोलर बेल राष्ट्रपति भवन में सर्वोदय विद्यालय सहित हमारे स्कूल दामला व गढ़गंगा के एक स्कूल में लगाई गई है। वह कहती हैं दो-तीन अन्य स्कूलों ने भी इसकी मांग की है। मुझे उम्मीद है कि स्कूल की घंटी का यह विकल्प कारगर साबित होगा।

 

असंगठित क्षेत्र की एक युवती का प्रयोग भी ग्रामीण इलाकों में खासा लाभप्रद हो सकता है। पोलियो ने हनुमानगढ़ जिले के प्रेमपुरा गाँव की जसवीर कौर की चलने-फिरने की रफ्तार को भले ही धीमा कर दिया लेकिन इस युवती के नवाचारों ने उसे राष्ट्रपति भवन का भ्रमण एवं पुरस्कार प्रदान करा दिया।

 

श्रीगागंनगर में जन्मी एवं हनुमानगढ़ में ब्याही चौंतीस वर्षीय जसवीर बताती हैं कि मेरा एक पैर पोलियो के कारण कमजोर है। पोलियो की विकलांगता को दूर करने के लिए पिताजी ने कोई कसर नहीं रखी पर लाभ नहीं मिला। शिक्षा भी प्राइमरी तक ही प्राप्त कर सकी। 22 वर्ष की होने पर किसान दारासिंह से शादी हो गई। हमारे पास सात बीघा जमीन है। घरेलू काम के अलावा यथाशक्ति खेती-किसानी के अन्य कार्य करती हूँ।

 

पोलियो के दंश के उबर कुछ नया करने की ललक शुरू से दिमाग में थी। एक दिन प्याज काटना था चाकू नहीं मिला तो गिलास से प्याज काटा। इस तरह नवाचार अंकुरित होने लगे। फिर एक दिन पति से कहा कि यदि आप सहयोग करें तो मैं एक यन्त्र बनाना चाहती हूँ। इस कार्य के लिए उनका पूरा सहयोग मिला।

 

फिर मैंने बिना बिजली से काम आने वाला एक ग्राइंडर बनाया और उसे विकसित किया। अलग-अलग कार्य के लिए इसमें सिस्टम फिट किए जिससे ग्राइंडिंग से लेकर रोटी बनाने का कार्य होता है। इसके अलावा चेहरा देखने का शीशा, शृंगार बाॅक्स, मसाला बाॅक्स भी इसमें हैं। अदरक, प्याज, लहसुन, टमाटर, पत्तागोभी, फूलगोभी जैसी सब्जियाँ एवं फल काटने तथा मिक्सिंग भी तरीके से किया जाता है। इस तरह मेरे द्वारा बनाए उपकरण से सात प्रकार के काम किए जा सकते हैं। अर्थातः ‘एक उपकरण सात काम’ कर सकते हैं।

 

राष्ट्रपति भवन में गत मार्च में मुझे प्रशस्ति-पत्र एवं दस हजार रुपये का चेक प्रोत्साहन पुरस्कार के रूप में मिलने से मेरी इच्छाशक्ति और दृढ़ हुई है।

 

साभार : कुरुक्षेत्र सितम्बर 2015

 

लेखक संवाद समिति यूनीवार्ता में कार्यरत हैं। ई-मेल: manoharjoshi46@yahoo.com

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading