खुले में शौच से मुक्ति में बच्चे निभा रहे हैं अहम भूमिका

25 Oct 2015
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राजु कुमार

 

‘‘मैं रोज सुबह उठकर अपने दोस्तों के साथ उन जगहों पर चला जाता था, जहाँ से गाँव के लोग शौच के लिए बाहर जाते थे। हाथ में ढपली और सीटी होती थी। जैसे ही कोई शौच के लिए हाथ में डिब्बा या बोतल लेकर निकलता था। हम सभी दोस्त उसके चारों ओर इकट्ठा हो जाते थे और जोर-जोर से ढपली एवं सीटी बजाने लगते थे। इससे सभी लोगों को पता चल जाता था कि कोई शौच के लिए खुले में जा रहा है। हम लोग उनके आगे-आगे राह रोकते हुए तब तक ऐसा करते थे, जब तक कि वे लौट न जाएँ। कई लोग नहीं मानते थे। कुछ लोग गाली भी देते थे। उस समय हमें बुरा लगता था, पर गाँव को स्वच्छ बनाने के लिए इस मजेदार काम को करने में हमें मजा आता था।’’ इस अनुभव को साझा करते हुए सीहोर जिले के थूना कलां ग्राम पंचायत के 8वीं कक्षा के छात्र विष्णु प्रजापति अपने गाँव की स्वच्छता को लेकर खुशी का इजहार करता है।

 

मध्यप्रदेश में समुदाय आधारित स्वच्छता अभियान में बच्चों की भूमिका को भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विभिन्न जिलों के वे गाँव, जो खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं, वहाँ पर बच्चों की भूमिका भी अलग-अलग तरीके से महत्वपूर्ण रही है। बच्चों को लेकर बने निगरानी समूह ने काफी प्रभावी काम किया है। ट्रिगरिंग की विभिन्न तकनीकों का बच्चों पर भी असर पड़ा और वे अपने घरों में व्यक्तिगत शौचालय की माँग करने लगे। जहाँ शालाओं में बच्चों को स्वच्छता सुविधाएँ बेहतर तरीके से मिल रही हैं, वहाँ के बच्चे अपने घरों में शौचालय की माँग करने में आगे दिखाई दिए। यद्यपि कई जगहों पर निगरानी समूह में शामिल बच्चों को बड़े लोग बुरी तरह डाँट देते हैं, जिसकी वजह से बच्चों को बुरा लगता है, पर अपने समूह के साथियों और गाँव के वरिष्ठों की प्रेरणा से वे अपने काम में सफलता भी हासिल कर रहे हैं।

 

हरदा जिले के केलनपुर गाँव की शाला के पास की सड़क किनारे गाँव के लोग खुले में शौच करते थे। वहाँ राहगीरों को परेशानी होती थी, तो वे दूसरी सड़कों से आना-जाना करते थे, पर शाला में पढ़ रहे बच्चों को उसकी बदबू को लगातार झेलना पड़ता था। जब गाँव को खुले में शौच से मुक्त करने की बात हुई, और बच्चों के निगरानी समूह बनाने की बात हुई, तो सभी बच्चों ने हामी भर दी। 5वीं की छात्रा अनामिका बताती हैं, ‘‘मैं और मेरी सहेलियाँ उन जगहों पर खड़े रहते थे, जहाँ महिलाएँ शौच के लिए जाती थी। लड़के उन जगहों पर जाते थे, जहाँ पुरुष शौच के लिए जाते थे। हम लोग सीटी बजाकर उन्हें शर्मिन्दा करते थे।’’

 

बैतूल जिले के कुम्हली गाँव के 9वीं के छात्र लोकेश बारस्कर कहते हैं, ‘‘ठण्ड के दिनों में हम सुबह 5 बजे उठकर उन रास्तों पर चले जाते थे, जहाँ से गाँव के लोग शौच के लिए जाते थे। वहाँ हम अलाव जलाकर ठण्ड से बचते थे। हमें बहुत मजा आता था। सबके गले में सीटी लटकी हुई होती थी। जैसे ही कोई शौच के लिए बाहर जाते हुए दिखता था, हम दौड़कर रास्ते पर उसके पास चले जाते थे और जोर-जोर से सीटी बजाकर उन्हें शर्मिन्दा करते थे। हमें कभी परेशान नहीं होना पड़ा। हम बच्चों के समूह में गाँव के एक बड़े आदमी जरूर रहते थे। फिर वे उस व्यक्ति को समझाते भी थे।

 

बैतूल जिले के मुलताई विकासखण्ड के लेंदागोंदी गाँव की 7वीं की छात्रा राखी चिकाने कहती हैं, ‘‘मैंने जब सीटी बजाकर एक बुजुर्ग को रोकने की कोशिश की थी, तो उन्होंने मुझे बहुत डाँट दिया था। मुझे बहुत बुरा लगा था। मुझे लगा कि ऐसा नहीं करना चाहिए। फिर अगले दिन सहेलियाँ आईं, तो मैं उनके साथ चली गई। वे फिर डाँट दिए, पर थोड़ा कम। चार-पाँच दिन बाद उन्होंने डाँटना बन्द कर दिया और उन्होंने शौचालय बनवा लिया। अब सामने दिखते हैं, तो मुस्कुराते हैं।’’

 

इन बच्चों के अनुभव यह बताते हैं कि गाँव को स्वच्छ बनाने और खुले में शौच से मुक्ति के लिए बच्चों ने अहम भूमिका निभाई है। कई खट्टे अनुभवों के बावजूद बच्चों को इस काम में मजा आया। वे आज भी उन मैदानों में कभी-कभार चक्कर लगा लेते हैं, जहाँ लोग खुले में शौच करते थे।

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