हैंडवाॅश डे 15 अक्टूबर 2015 पर विशेष

14 Oct 2015
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स्कूलों से नदारद है हैंडवाॅश यूनिट

प्रेमविजय पाटिल

धार। आदिवासी बहुल धार जिले में हैंडवाॅश के लिए लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं। हर ग्राम पंचायत स्तर पर हैंडवाॅश यूनिट बनाकर उनके लिए वाह-वाही लूटी गई है, जबकि हकीकत कुछ और है। स्थिति यह है कि कहीं भी हैंडवाॅश यूनिट ठीक से काम नहीं कर रही है। पहली बात तो यह है कि उन्हें इस गुणवत्ता का ही नहीं बनाया गया कि उसे बेहतर तरीके से उपयोग में लिया जा सके। इतना सब कुछ तो ठीक है, लेकिन जहाँ से हैंडवाॅश यूनिट गायब हो चुकी है, उनका क्या किया जाए। दरअसल, राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल के हर माह नए-नए फरमान के चलते रेडिमेड हैंडवाॅश यूनिटें लगाई गई और अब ये स्कूलों से गायब हो चुकी है।

 

 

तिरला विकासखण्ड से लेकर आदिवासी अंचल के भीतर विकासखण्डों में बहुत ही दयनीय स्थिति है। बच्चों को स्कूल में मध्याह्न भोजन दिया जा रहा है, लेकिन हाथ धोने के लिए उनके पास कोई साधन ही नहीं है। साधनों की बात करे तो हैंडवाॅश यूनिट स्कूलों से गायब है। इसके अलावा साधन से उठकर सुविधाओं की बात करे, तो पानी ही नही है। ऐसे गाँव में जहाँ पर बच्चों को पीने का पानी ही नसीब नहीं होता, वहाँ पर हैंडवाॅश यूनिट का औचित्य ही समझ से परे हैं। जहाँ से फरमान आता था, वहाँ पर पूर्ति के लिए मैदानी स्तर की टीम काम में जुट जाती थी। इसी के परिणामस्वरूप पूरे जिले के आदिवासी अंचल में हैंडवाॅश यूनिट के लिए बहुत अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती। अलबत्ता कुछ स्कूल ऐसे हैं, जहाँ पर सकारात्मक स्थिति बनी, लेकिन ऐसे स्कूलों की संख्या हाथ की उंगलियों पर गिनी जा सकती है। जबकि 761 ग्राम पंचायतों में करीब 2 हजार स्कूलों का संचालन होता है। इन स्कूलों में कहीं भी कोई सुविधा नहीं है।

 

कोठियाँ सरपंच के घर

 

ज्यादातर ग्राम पंचायत स्कूलों में रेडिमेड हैंडवाॅश यूनिट लगाई गई। अब ये हैंडवाॅश यूनिट गायब है। इसकी वजह यह है कि इसके अन्दर लगाई गई प्लास्टिक की पानी की टंकी और नल या तो सरपंच के घर में उपयोग में आ रहे हैं या फिर ग्राम पंचायत के सचिव के यहाँ। इस तरह के हालात में कैसे हम स्वच्छता के मिशन में आगे हो सकते हैं। इतना ही नहीं, कुछ ग्राम पंचायतों में दिखावे के लिए यह यूनिट पड़ी तो है, लेकिन शिक्षक से लेकर हर स्तर पर इसे भंगार (बेकार वस्तु) के तौर पर देखा जा रहा है। भंगार से ज्यादा इनका कोई महत्व नहीं रह गया है। शासन ने करोड़ों रुपए खर्च कर डाले, जो उनके लिए वाह-वाही का विषय बन गया। जबकि बच्चे आज भी इन सब व्यवस्थाओं से दूर हैं। चिन्ता जब उठती है, जब पानी की व्यवस्था को लेकर ही स्थानीय पंचायतें और पीएचई दोनों ही फेल है। यदि ऐसा करना है तो पहले पानी का इंतजाम करना होगा, उसके बाद व्यवस्थाओं में सुधार करते हुए हैंडवाॅश यूनिट काम करेगी।

 

साबुन कहाँ है

 

एक और प्रश्न यह भी उठता है कि हैंडवाॅश यूनिट के लिए तमाम व्यवस्था कर दी जाए, लेकिन गाँव के बच्चे को क्या मिट्टी से ही हाथ धोने के लिए मजबूर रहना पड़ेगा। देखना यह है कि आखिर स्कूल में साबुन क्यों नहीं पहुँच पा रहे हैं। साबुन का पैसा कौन चट कर रहा है। जबकि कागजों पर साबुन के लिए स्कूल मद में राशि खर्च करने का भी प्रावधान है।

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