गाँधीजी का सपना साकार करेगा स्वच्छ भारत मिशन

27 Oct 2015
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संजय श्रीवास्तव

 

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दो अक्टूबर 2014 को महात्मा गाँधी के जन्मदिन पर भारत स्वच्छता अभियान शुरू किया था। इस हिसाब से इस अभियान को एक साल हो चला हैं। इस साल जब प्रधानमन्त्री ने फिर लालकिले से देश को सम्बोधित किया तो वह एक साल में स्वच्छता अभियान की प्रगति से सन्तुष्ट नजर आए। एक साल में शुरुआती तौर पर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। आने वाले सालों में इस मामले में बहुत कुछ और भी होना है। स्वच्छता अभियान की इस देश को सही मायनों में सबसे ज्यादा जरूरत है। अगर हम खुद में स्वच्छता की आदत डाल सके तो ये देश की बड़ी सामाजिक क्रान्तियों में एक होगी। ये एक बहुत अच्छा अभियान है। इसकी शुरुआत प्राथमिक तौर पर हमारे अपने परिवेश की स्वच्छता से होती है। यानी हम जहाँ रहें, वहाँ और उसके आसपास सफाई रखें। धीरे-धीरे हम इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं। भारत सरकार के इस अभियान से निःसन्देह ये सन्देश तो गया ही है कि सफाई हमारा अपना काम भी है। राज्य सरकारें न केवल इसके महत्व को समझ रही हैं बल्कि पूरा सहयोग भी कर रही हैं। स्कूल, कॉलेज, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थान इस अभियान में हाथ बढ़ा रहे हैं। सही बात तो यह है कि हमें हर स्तर पर सफाई की जरूरत है। और ये भी सही है कि सफाई के प्रतिमानों पर हमें काफी कुछ सीखने की भी जरूरत है।

 

लालकिले से प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सफाई अभियान का आगाज करते हुए शपथ ली, “मैं शपथ लेता हूँ कि मैं स्वच्छता के प्रति सजग रहूँगा और इसके लिए समय दूँगा। हर वर्ष 100 घण्टे यानी हर सप्ताह दो घण्टे श्रमदान करके स्वच्छता के लिए काम करूँगा। मैं न गन्दगी करूँगा, न किसी और को करने दूँगा। सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मुहल्ले से, मेरे गाँव से और मेरे कार्यस्थल से इसकी शुरुआत करूँगा।” काश, हम अपने प्रधानमन्त्री से इस बारे में कुछ सीख पाते।

 

गाँधीजी स्वच्छता के सबसे बड़े पैरोकार थे। वह रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने आश्रम की सफाई किया करते थे। वर्धा आश्रम में उन्होंने अपना शौचालय स्वयं बनाया था और इसे प्रतिदिन साफ करते थे। गाँधी जी ने इसके साथ ही ये सन्देश भी दिया था कि हर घर के लिए जरूरी है शौचालय। वह खुले में शौच के विरोधी थे। उनका मानना था कि इससे गन्दगी और संक्रामक बीमारियाँ फैलती हैं।

 

सच ही है कि शहरों-गाँवों सभी जगह गन्दगी की सबसे बड़ी समस्या है। एक तो स्थानीय निकाय अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे हैं, दूसरे नागरिकों का सहयोग नहीं मिल रहा है। होता क्या है कि बाजारों में सफाई कार्य सुबह हो जाता है। सुबह दस बजे दुकानदार दुकान खोलता है और सारा कूड़ा सड़क पर फेंक देता है। यही कूड़ा पूरे दिन विचरण करता रहता है। दुकानदार चाहें तो दुकान का कूड़ा थैली में रख सकते हैं, लेकिन ऐसा करना वे अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। यही हालत घरों की है। सामान्यतः लोग घरों का कूड़ा झाड़कर नाली में फेंक देते हैं। नाली में ही पॉलीथिन जाती रहती है। सारा मलबा नाले-नालियों के हवाले हो रहा है। इससे जलभराव और नाले-नाली जाम की समस्या है।

 

बढ़ रहे हैं गाँवों में शौचालय

 

महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती वर्ष 2019 में है। तब तक भारत को निर्मल बनाने का लक्ष्य है। आशा की जानी चाहिए कि हम अपने देश से गन्दगी पूरी तरह हटा देंगे। वर्ष 2012 तक देश के 11 करोड़ ग्रामीण परिवारों के पास शौचालय नहीं थे। इस अभियान के शुरू होने के बाद करीब 79 लाख टायलेट केन्द्र द्वारा बनवाए गए। हर टायलेट पर सरकार 12 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दे रही है। वर्ष 2019 तक 6.84 करोड़ नए टॉयलेट बनवाने का लक्ष्य है।

 

हैरानी की बात ये भी है कि गाँवों में बहुत से घर ऐसे भी हैं, जहाँ शौचालय होते हुए भी घर के एक या दो सदस्य खुले में शौच करने जरूर जाते हैं। जून 2014 में रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कॉमपेशनेट इकोनॉमिक्स (आरआईएसई) ने बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों का एक सर्वेक्षण किया। उसने पाया कि जिन 40 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के घर में शौचालय हैं, उन परिवारों का भी कम से कम एक व्यक्ति खुले में शौच करता है।

 

एक बार एक अंग्रेज ने महात्मा गाँधी से पूछा यदि आपको एक दिन के लिए भारत का बड़ा लाट साहब (वायसराय) बना दिया जाए, तो आप क्या करेंगे। गाँधीजी ने कहा, राजभवन के पास जो गन्दी बस्ती हैं, मैं उसे साफ करूँगा। अंग्रेज ने फिर पूछा, मान लिजिए कि आपको एक और दिन उस पद पर रहने दिया जाए तब। गाँधी जी ने फिर कहा, दूसरे दिन भी वही करूँगा। जब तक आप लोग अपने हाथ में झाड़ू और बाल्टी नहीं लेंगे, तब तक आप अपने नगरों को साफ नहीं रख सकते। एक स्कूल को देखने के बाद उन्होंने शिक्षकों से कहा था, आप अपने छात्रों को किताबी पढ़ाई के साथ-साथ खाना पकाना और सफाई का काम भी सिखा सके, तभी आपका विद्यालय आदर्श होगा। गाँधी जी की नजर में आजादी से भी महत्वपूर्ण सफाई थी।

 

इसे रोकने के लिए कुछ अलग रणनीतियों की भी जरूरत है। आरती डोगरा, जो अभी हाल तक बीकानेर की डीएम थीं, कहती हैं कि हमें शौचालय गिनना छोड़ देना चाहिए। इसके बजाय हमें उन लोगों की गिनती करनी चाहिए, जो शौचालय बनने के बाद भी खुले में शौच करते हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, बीकानेर में 29 फीसदी परिवारों के पास शौचालय थे। आज यह आँकड़ा बढ़कर 82 प्रतिशत हो चुका है, और शौचालयों का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है। यह कैसे सम्भव हुआ? दरअसल कई तरह की रणनीतियों ने ग्रामीणों को अपने तौर-तरीकों में बदलाव के लिए विवश किया है। समुदाय के लोगों की निगरानी और बाल समितियों के गठन के सुखद नतीजे सामने आए हैं। इस काम में स्कूली बच्चों को लगाया गया है। वे तड़के ही गाँवों के आसपास निकल जाते हैं, और अगर कोई खुले में शौच करता दिखे, तो सीटी बजाते हैं।

 

माना जाता है कि देश में अब भी करोड़ों लोग खुले में शौच जाते हैं। इस सम्बन्ध में जिला पंचायत-स्तर पर कार्यशालाएँ कर जागरुकता बढ़ाने की योजना है। सरकार का लक्ष्य फिलहाल 2.5 लाख गाँव पंचायतों से जुड़े छह लाख गाँवों को पूरी तरह शौचालय युक्त कर उन्हें स्वच्छता की ओर बढ़ाने का है। एक जुलाई 2015 को 12,216 ग्राम पंचायत स्तर के गाँव पूर्णरुपेण टायलेट युक्त हो गए। हालाँकि सौ फीसदी टायलेटों का दावा करने वाली ग्राम पंचायतों की संख्या ज्यादा है, लेकिन अभी इस दावे की सत्यता का परीक्षण किया जाना है। सरकार इन सभी गाँवों को एक मॉनीटरिंग सिस्टम से जोड़ने की योजना बना रही है। साथ ही जरूरत स्वच्छ भारत के लिए नए तरीकों ओर तकनीक के साथ सोच को भी बदलने की है, जिसके लिए एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई है, जो नई योजनाओं और रणनीतियों की पड़ताल करेगी। इसके लिए वाट्सएप, फेसबुक और दूसरे सोशल प्लेटफार्म का सहारा लिया जा रहा है।

 

केन्द्र स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ाने के लिए नए आईएएस अधिकारियों को तैयार कर रहा है, जो जब जिले की जिम्मेदारियाँ लें तो स्वच्छ भारत अभियान का खास ख्याल रखें। करीब 180 आईएएस प्रोबेशनर्स को इस प्रोग्राम के लिए दक्ष किया जा रहा है। साथ ही सरकार देशभर में करीब 200 अन्य कलेक्टरों को भी इसकी ट्रेनिंग दे रही है।

 

शहरी सफाई पर सर्वे

 

कुछ समय पहले शहरी विकास मन्त्रालय ने इसी के परिप्रेक्ष्य में एक सर्वे कराया और उसमें पाया गया कि तमाम शहरों में सफाई की स्थिति पहले से बेहतर हुई है। हालाँकि कुछ जगहों पर इसकी स्थिति अच्छी नहीं है। गाँधी जी हमेशा कहा करते थे कि नगरपालिकाओं का मुख्य काम सफाई का होना चाहिए। अगर किसी शहर में सफाई की स्थिति ठीक नहीं है, इसका मतलब ये है कि आम जनता के साथ स्थानीय निकाय भी अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहे हैं।

 

शहरी विकास मन्त्रालय के सर्वे के मुताबिक साफ-सफाई के मामले में सबसे ऊपर रहा कर्नाटक का मैसूर। इसके अलावा कर्नाटक के तीन और शहरों ने भी टॉप टेन में जगह पाई। स्थानीय शहरी निकायों में दिल्ली छावनी 15वें स्थान पर रहा जबकि एनडीएमसी 16वें स्थान पर और एमसीडी 398वें स्थान पर। अगर एनसीआर की बात करें तो स्वच्छता के मामले में गुड़गाँव 466वें स्थान पर और फरीदाबाद 421वें नम्बर पर है। दिल्ली से सटा गाजियाबाद सफाई के मामले में 138वें स्थान पर है। इस लिहाज से एनसीआर में सबसे साफ-सुथरा शहर गाजियाबाद है जबकि मेरठ को 465वाँ स्थान मिला। स्वच्छता अभियान में पश्चिम बंगाल के 25 शहरों ने टॉप 100 में जगह बनाकर साफ-सफाई का एक उदाहरण पेश किया।

 

दक्षिण के 39 शहरों ने भी पूरब, पश्चिम और उत्तर के राज्यों को पीछे छोड़कर टॉप 100 में जगह बनाई। टॉप 100 में पूरब के 27, पश्चिम के 15 और उत्तर के सिर्फ 12 शहरों को स्थान मिला। हालाँकि ये शोचनीय बात है कि दस सबसे साफ शहरों में उत्तर भारत का एक भी शहर नहीं है बल्कि ये सारे शहर आमतौर पर दक्षिण भारत के हैं।

 

सफाई के मामले में हम कई बेहद छोटे और विकासशील देशों से सीख ले सकते हैं। थाईलैंड हमारे देश की तुलना में गरीब है लेकिन साफ-सुथरा देश। वहाँ के सार्वजनिक स्थल साफ-सुथरे हैं। सार्वजनिक शौचालय अधिक स्वच्छ और बेदाग। वह ज्यादातर यूरोपीय देशों से भी बेहतर स्थिति में हैं। बैंकॉक की गलियों का दिल्ली, मुम्बई या देश के दूसरे शहरों की गलियों से कोई मुकाबला नहीं।

 

ज्यादातर भारतीयों के पास मोबाइल फोन तो हैं लेकिन घर में शौचालय नहीं हैं। यह लोगों की स्वच्छता के प्रति जागरुकता की कमी को दिखाता है। इसी तरह भारतीय रेलवे में फैलने वाली गन्दगी के लिए हम खुद जिम्मेदार नहीं। शौचालयों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जाता। यहाँ तक कि वातानुकूलित डिब्बों में यात्रा करने वाले पढ़े-लिखे लोग भी अपने बच्चों को शौचालय सीट का इस्तेमाल नहीं करवा कर उन्हें बाहर ही शौच करवाते हैं। डिब्बों में कूड़ा फैलाना तो आम बात है। भारत में ज्यादातर धार्मिक स्थलों, गाँवो-कस्बों में और मन्दिरों के आस-पास अक्सर बहुत गन्दगी दिखाई देती है। इन जगहों पर कूड़े के ढेर, खुले में शौच, प्रदूषण और दूषित पीने का पानी आम बात है। ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में जाति से सम्बन्धित भावनाएँ अभी भी प्रबल और प्रचलित हैं। प्रदूषण की अवधारणा की सामाजिक स्वीकृति अभी जारी है जिसमें स्वच्छता औऱ सफाई की उपेक्षा होती रही है। सफाई के लिए बड़े बजट की जरूरत नहीं है। हम अपनी सामान्य आदतों से थोड़ा सुधार कर लें, तो हर जगह सफाई दिखाई देगी। ये आदतें हैं इधर-उधर न थूकना, निर्धारित स्थान पर ही गन्दगी फेंकना, अपने मोहल्ले की जाम पड़ी नालियों को खोलना और नियमित सफाई करना। भारत में आज हममें से अधिकतर को ‘शौचालय प्रशिक्षण’ और स्वच्छता तथा सफाई की शिक्षा की जरूरत है। गाँधीजी इस मामले में हमारे पथ-प्रदर्शक साबित हो सकते हैं।

 

प्रधानमन्त्री ने महात्मा गाँधी के जन्मदिन पर स्वच्छता अभियान शुरू किया था। लालकिले की प्राचीर से किसी प्रधानमन्त्री ने पहली बार गन्दगी के खिलाफ आवाज उठाई। लालकिले से दिए अपने भाषण में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत का नारा दिया। दो अक्टूबर के दिन स्वच्छता अभियान की शुरुआत उचित ही थी, क्योंकि गाँधीजी स्वच्छता के सबसे बड़े पैरोकार थे। महात्मा गाँधी रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने आश्रम की सफाई किया करते थे। वर्धा आश्रम में उन्होंने अपना शौचालय स्वयं बनाया था और इसे प्रतिदिन साफ करते थे। स्वच्छता अभियान की इस देश को सही मायनों में सबसे ज्यादा जरूरत है। अगर हम खुद में स्वच्छता की आदत डाल सकें तो ये देश की बड़ी सामाजिक क्रान्तियों में एक होगी।

 

102 साल की वृद्धा की मिसाल

 

छत्तीसगढ़ में स्वच्छता को लेकर 102 साल की महिला ने अनूठी मिसाल पेश की है। इस उम्र तक वैसे ही बेहद कम लोग पहुँचते हैं और ऐसे में इस वृद्ध महिला ने उम्र की बाधा को दूर करते हुए अपने घर में शौचालय बनवाने का काम किया। कहानी है छत्तीसगढ़ के अति पिछड़े इलाके धमतरी जिले के कोटाभर्री की, जहाँ इस वृद्धा ने जागरुकता और स्वास्थ्य को लेकर अनोखी मुहिम चलाई। इस मुहिम के लिए वृद्धा ने अपनी बकरियों को भी बेचने से गुरेज नहीं किया।

 

जिले के कलेक्टर ने कोटाभर्री गाँव में प्रवास के दौरान चौपाल लगाकर लोगों को खुले में शौच से मुक्ति के लाभ के बारे में बताया था। कलेक्टर की अपील पर शौचालय बनाने सबसे पहले आगे आई गाँव की 102 वर्षीय वृद्ध महिला कुंवरबाई यादव। कुंवरबाई के सामने जब शौचालय बनाने में पैसों की कमी आई तो उन्होंने अपनी बकरी को बेचने में जरा भी देर नहीं की। उन्होंने गाँव में सबसे पहले शौचालय बनाने के लिए घर की बकरियों को बेचकर 22 हजार रुपये जमा किए और शौचालय बनवाया। स्वच्छता को लेकर कुंवरबाई की मुहिम यही नहीं रुकी। उन्होंने एक-एक घर में जाकर और गाँव के घर-घर में दस्तक देकर लोगों को समझाया और सभी घरों में शौचालय निर्माण कराने के लिए उन्हें मना भी लिया। ग्राम पंचायत बरारी के इस आश्रित ग्राम में लगभग साढ़े चार सौ लोग रहते हैं। गाँव अब पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त हो चुका है।

 

रानी ने दिलाई पहचान

 

बिहार के बांका जिले में ठेठ देहात चांदन का एक गाँव है सलोनिया। जंगल और पहाड़ों से घिरा हुआ। अधिकांश आबादी भी पिछड़ी और महादलित परिवारों की है। गाँव की कम पढ़ी-लिखी एक महिला रानी ने इस गाँव को राष्ट्रीय-स्तर पर पहचान दिलाई है। रानी की पहल से ग्लोबल सेनिटेशन फण्ड के विदेशी अधिकारी भी इस गाँव तक आने को मजबूर हुए हैं।

 

दरअसल, रानी के अथक प्रयास से इस गाँव के सभी 47 घरों को अपना शौचालय मिल गया है। गाँव की पूरी आबादी को खुले में शौच से मुक्ति मिल गयी है। रानी अब अपने गाँवों के बाद पड़ोसी गाँवों में शौचालय बनवाने की मुहिम में जुट गई हैं ताकि पंचायत के ज्यादातर गाँवों में शत-प्रतिशत घरों में शौचालय बन जाए। रानी के स्वच्छता अभियान की शुरुआत उसके विकास मित्र बनने के बाद शुरु हुई। विकास मित्र बनने के बाद उसे पंचायत के घरों में शौचालय बनवाने के लिए प्रोत्साहन की जिम्मेदारी मिली। उस वक्त गाँव की अधिकांश महिलाओं सहित सभी नागरिक खुले में शौच जाते थे। लेकिन, दो साल के अन्दर सब कुछ बदल गया। सभी घरों ने अपना शौचालय बनाया। शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने वाला यह बांका जिला का पहला गाँव बन गया। फिर सबने खुले में शौच से भी तौबा कर ली।

 

महात्मा गाँधी और स्वच्छता

 

गाँधीजी ने अपने बचपन में ही भारतीयों में स्वच्छता के प्रति उदासीनता की कमी को महसूस कर लिया था। उन्होंने किसी भी सभ्य और विकसित मानव समाज के लिए स्वच्छता के उच्च मानदण्ड की आवश्यकता को समझा। उनमें यह समझ पश्चिमी समाज में उनके पारम्परिक मेलजोल और अनुभव से भी विकसित हुई। अपने दक्षिण अफ्रीका के दिनों से लेकर भारत तक वह अपने पूरे जीवनकाल में निरन्तर बिना थके स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरुक करते रहे। गाँधीजी के लिए स्वच्छता एक बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था।

 

गाँधीजी ने स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में स्वच्छता को तुरन्त शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। 20 मार्च, 1916 को गुरुकुल कांगड़ी में दिए भाषण में उन्होंने कहा था, “गुरुकुल के बच्चों के लिए स्वच्छता और सफाई के नियमों के ज्ञान के साथ ही उनका पालन करना भी प्रशिक्षण का एक अभिन्न हिस्सा होना चाहिए… इन अदम्य स्वच्छता निरीक्षकों ने हमें लगातार चेतावनी दी कि स्वच्छता के सम्बन्ध में सब कुछ ठीक नहीं है… मुझे लग रहा है कि स्वच्छता पर आगन्तुकों के लिए वार्षिक व्यावहारिक सबक देने के सुनहरे मौके को हमने खो दिया।”

 

1920 में गाँधीजी ने गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की। यह विद्यापीठ आश्रम की जीवन पद्धति पर आधारित था। इसलिए वहाँ शिक्षकों, छात्रों और अन्य स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं को प्रारम्भ से ही स्वच्छता के कार्य में लगाया जाता था। यहाँ के रिहायशी क्वार्टरों, गलियों, कार्यालयों, कार्यस्थलों और परिसरों की सफाई दिनचर्या का हिस्सा थी। गाँधीजी यहाँ आने वाले हर नये व्यक्ति को इस सम्बन्ध में विशेष पढ़ाते थे। यह प्रथा आज भी कायम है। जो लोग गाँधीजी के साथ रहने की इच्छा जाहिर करते तो इस बारे में उनकी पहली शर्त होती थी कि आश्रम में रहने वालों को आश्रम की सफाई का काम करना होगा जिसमें शौच का वैज्ञानिक निस्तारण करना भी शामिल है।

 

जब वह दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो लोकमान्य बालगंगाधर तिलक से मिलने पुणे गए। उन्हें जहाँ ठहराया गया, उस घर में शौचालय की जब उन्होंने खुद ही सफाई की तो लोग दंग रह गए। इसके बाद कोलकाता में शान्ति निकेतन में भी उन्होंने न केवल ऐसा फिर किया बल्कि वहाँ के छात्रों के भी प्रेरित किया। अपने उस पहले भारतीय दौरे में जिस बात को लेकर वह सबसे ज्यादा व्यथित होते थे, वह थी देश के धार्मिक स्थानों पर फैली हुई गन्दगी जिसकी ओर उन्होंने बार-बार ध्यान खींचा।

 

कांग्रेस के करीब-करीब हर सम्मेलन में दिए अपने भाषण में गाँधीजी स्वच्छता के मामले को उठाते थे। अप्रैल 1924 में उन्होंने दाहोद शहर के कांग्रेस सदस्यों को अच्छी साफ-सफाई रखने के लिए बधाई दी और सुझाव दिया कि वह अछूत समझे जाने वाले समुदाय के इलाकों में जाएँ और उनमें स्वच्छता के प्रति जागरुकता जगाएँ। गाँधीजी मानते थे कि नगरपालिका का सबसे महत्वपूर्ण कार्य सफाई रखना है। उन्होंने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को पार्षद बनने के बाद स्वच्छता के काम करने का सुझाव दिया। गाँधीजी की नजर में अस्वच्छता बुराई थी। 25 अगस्त, 1925 को कलकत्ता अब (कोलकाता) में दिए गए भाषण में उन्होंने कहा, “वह (कार्यकर्ता) गाँव के धर्मगुरु या नेता के रूप में लोगों के सामने न आएँ बल्कि अपने हाथ में झाड़ू लेकर आएँ।”

 

पंचायतों की भूमिका के बारे में गाँधीजी ने कहा था कि गाँव में रहने वाले प्रत्येक बच्चे, पुरुष या स्त्री की प्राथमिक शिक्षा के लिए, घर-घर में चरखा पहुँचाने के लिए, संगठित रूप से सफाई और स्वच्छता के लिए पंचायत जिम्मेदार होनी चाहिए।

 

गाँधीजी ने हमारा ध्यान इस ओर खींचा कि हमें पश्चिमी देशों में सफाई रखने के तरीकों को सीखना चाहिए और उनका उसी तरह पालन करना चाहिए। 21 दिसम्बर, 1924 को बेलगाँव में अपने नागरिक अभिनन्दन के जवाब में उन्होंने कहा था, “हमें पश्चिम में नगरपालिकाओं द्वारा की जाने वाली सफाई व्यवस्था से सीख लेनी चाहिए… पश्चिमी देशों ने स्वच्छता और सफाई विज्ञान को किस तरह विकसित किया है उससे हमें काफी कुछ सीखना चाहिए… पीने के पानी के स्रोतों की उपेक्षा जैसे अपराध को रोकना होगा।”

 

लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं।

 

लेखक ईमेल : sanjayrotsn@gmail.com

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