बनने थे 18 लाख, बने मात्र 2 लाख शौचालय

17 Nov 2015
0 mins read

रूबी सरकार

 

स्वच्छता के अधिकार पर दक्षिण एशियाई अभियान के अनुसार भारत के सन्दर्भ में सबसे कड़वी सच्चाई यह है, कि एक ओर इसकी पहचान उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में है और यह दुनिया के 10 आर्थिक शक्तियों में अपनी जगह बना चुका है, पर दूसरी ओर मानव विकास सूचकांक में यह 134वें पायदान पर जा पहुँचा है। यह स्थिति इस बात को दर्शाता है कि भारत में अभी भी मानव विकास को लेकर युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है।

 

भारत में 62 करोड़ से अधिक लोग (राष्ट्रीय औसत 49.2 फीसद) खुले में शौच करते हैं, जिसकी वजह से इसे ‘विश्व के खुले शौच की राजधानी’ की संज्ञा दी जाती है। खुले में शौच करने वाले देशों में यह संख्या भारत के बाद के 18 देशों की संयुक्त संख्या के बराबर है। दक्षिण एशियाई देशों में 69.2 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं, जिसमें से भारत के लगभग 90 फीसदी हैं। इसी तरह विश्व में एक अरब 10 लाख लोग खुले में शौच करते हैं, जिसमें से भारत के लगभग 59 फीसदी हैं। भारत की लगभग आधी आबादी के घरों में शौचालय नहीं है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में यह स्थिति ज्यादा बदतर है। देश में अनुसूचित जाति के 77 फीसदी घरों में एवं अनुसूचित जनजाति के लगभग 84 फीसदी घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है। भारत के विभिन्न राज्यों की स्थिति देखें, तो झारखंड में 77 फीसदी, उड़ीसा में 76.6 फीसदी और बिहार में 75.8 फीसदी घरों में शौचालय नहीं है। ये तीनों राज्य देश के गरीब राज्यों में शुमार है एवं जनगणना 2011 के अनुसार यहाँ की बड़ी आबादी 50 रुपए प्रतिदिन की आय से भी कम में जीवनयापन करती है।

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना है, कि महात्मा गांधी की 150वीं जन्म वर्ष गांठ अर्थात 2 अक्टूबर 2019 तक देश सम्पूर्ण स्वच्छता को प्राप्त करे। इसके लिए उन्होंने विगत 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन अभियान की शुरुआत की थी, जिसका कार्य ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों के जरिये स्वच्छता के स्तरों का उन्नत बनाना तथा ग्राम पंचायतों को खुले में शौचप्रथा से मुक्त, स्वच्छ एवं साफ-सुथरा बनाना है।

 

इसी परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश में इसके कार्यान्वयन को लेकर विगत एक वर्षो के अनुभव पर कुछ महत्वपूर्ण चिंताएं उभर कर आयी हैं। निश्चित ही शौचालय की आवश्यकता प्रत्येक समुदाय और परिवार को है और खुले में शौच की प्रथा से मुक्ति के लिए व्यवहार परिवर्तन तथा शौचालय का होना जरूरी है। लेकिन इसके प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन के लिए संस्थागत, निगरानी, मानव-संसाधन और प्रक्रियाओं के अतंर्गत कुछ और भी कार्य करने की जरूरत है। मसलन-वर्तमान में शौचालय निर्माण की जो प्रगति है, वह काफी धीमी है, इस वित्तीय वर्ष में 18 लाख, 17 हजार 114 (अठारह लाख सत्रह हजार एक सौ चौदह) शौचालय निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, किन्तु 6 माह के आंकलन के बाद पाया गया, कि मात्र 2 लाख, 24 हजार, 92 (दो लाख चौबीस हजार बानबे) ही शौचालय का निर्माण हो पाया, जो मात्र 12.33 फीसदी है। 2012 में किये गये बेस लाइन सर्वे के मुताबिक प्रदेश में 90 लाख, 39 हजार, 497 (नब्बे लाख उनतालीस हजार चार सौ सत्तानबे) परिवारों के पास शौचालय नहीं थे। इसके बाद 13 लाख, 16 हजार, 714 (तेरह लाख सोलह हजार सात सौ चौदह) ही बन सके हैं। इस प्रकार यदि देखा जाये, तो जिस गति से प्रदेश में शौचालय निर्माण किये जा रहे हैं, 2019 तक प्रत्येक घरों में शौचालय उपलब्धता की बात बेमानी होगी।

 

दूसरी बात स्वच्छता और पानी एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए शौचालय के उपयोग के लिए पानी उपलब्ध होना आवश्यक है। जहां भी शौचालय का निर्माण किया जा रहा है, वहां पर पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है, अन्यथा शौचालय का केवल ढांचा ही उपलब्ध हो सकेगा और बाद में परिवार उसका उपयोग अन्य प्रायोजन के लिए करना शुरू कर देंगे। इसके अलावा खुले में शौच करने की प्रथा से मुक्ति के लिए पहली प्राथमिकता व्यवहार परिवर्तन को देना होगा। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत राज्य में मिशन के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए जनसंचार, शिक्षा और संवाद की सामग्रियों जैसे- होर्डिंग्स, पम्पलेट या अन्य सामग्री का प्रकाशन केन्द्रीयकृत रूप में किया जाता है, जिससे इस प्रकार के प्रचार-प्रसार की सामग्री में स्थानीय भाषा और संदेश शामिल नहीं हो पाते हैं। पूर्व में बनाये गये शौचालय, जो जर्जर स्थिति में हैं या जहां शौचालय बनाया ही नहीं गया और ग्रामीणों का नाम बतौर हितग्राहियों के रूप में जोड़ दिया गया है, वहां शौचालय निर्माण को लेकर स्वच्छ भारत मिशन के दिशा-निर्देश में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है, जबकि पूर्व में इस तरह के निर्माण कार्यो में की गई लापरवाही के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे भी हितग्राही मिल जाते हैं, जिनके घरों में शौचालय होना बताया जाता है, जबकि उन घरों में शौचालय है, ही नहीं। इसलिए गुम शौचालयों अत्यधिक गरीब परिवारों में ध्वस्त हो गये शौचालयों के स्थान पर नये शौचालय के निर्माण कार्य को भी इस मिशन के अंतर्गत जोड़ना होगा।

 

उमरिया जिले के चंदनिया गाँव में शौचालय निर्माण का जो डाटा वेबसाइट पर दर्शाया गया है, उसके अनुसार 22 घरों में शौचालय निर्माण हुआ है, जबकि वास्तविकता यह है कि 77 घरों में शौचालय का निर्माण तो किया गया है, किन्तु सभी शौचालय अपूर्ण हैं, लिच पिट नहीं बनाये गये है, इस आधार पर वहां के पूर्व सरंपच व सचिव के ऊपर आपराधिक मुकदमें दर्ज किये गये हैं।

 

जलाधिकार अभियान के ‘रनसिंह परमार’ के अनुसार स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय निर्माण में जिन तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, उससे और भी गम्भीर समस्यायें उभरने वाली है। मुरैना जिले में दो लिचपिट की जगह पर कई गावों में सेप्टिक टैंक बनाया जा रहा है, जिससे आने वाले दिनों पुन: मैला ढोने जैसी अमानवाीय प्रथा को प्रोत्साहन मिलेगा। इसलिए निर्माण कार्य में उपयोग की जाने वाली तकनीकी पर व्यापक रूप से स्थानीय स्तर पर राजमिस्त्रियों का क्षमतावर्द्धन किये जाने की आवश्यकता है।

 

स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति और कार्यान्वयन में ग्राम, पंचायत, विकास खण्ड, जिला और राज्य स्तर पर स्वयंसेवी संस्थाओं, बुद्विजीवियों अथवा ‘तीसरे वर्ग’ की भूमिका को प्रभावी करने की भी जरूरत है क्योंकि सरकार के पास मिशन के कार्यान्वयन में मानव संसाधन के पर्याप्त उपलब्धता नहीं है, इसलिए समर्पित रूप से काम करने वाले लोगों, निजी संस्थाओं की पहचान कर उनको इसमें शामिल करना होगा। मिशन के अंतर्गत निर्माण कार्य के ठेकेदारों को भुगतान की बात करें, भुगतान में पंचायत की भूमिका को गौण कर दिया गया है, जबकि इस मिशन के कार्यान्वयन में सबसे महत्वपूर्ण इकाई पंचायत ही है। इसलिए पंचायत को इस कार्य के लिए व्यापक अधिकार दिये जाने की आवश्यकता है।

 

1. साथ ही पंचायत के अंतर्गत ग्रामसभाओं द्वारा शौचालय निर्माण की मांग और प्रस्ताव को प्राथमिकता देकर मिशन द्वारा कोटे के अंतर्गत शौचालय निर्माण के आबंटन पर रोक लगाया जाना चाहिए।

 

2. व्यक्तिगत रूप से स्वच्छता को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी है कि संस्थागत शौचालयों को भी प्रोत्साहित किया जाये।

 

3. सार्वजनिक स्थलों और शासकीय भवनों में स्वच्छ और सुरक्षित सामुदायिक शौचालयों की व्यवस्था हो।

 

4. स्कूल में नौनिहालों को स्वच्छता व्यवहार के प्रोत्साहन तथा बाल अधिकार सरंक्षण कानून के अनुपालन के लिए शौचालयों और उसका उपयोग होना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

 

5. सरकारी दावे में प्रदेश के सभी स्कूलों में शौचालय तथा विशेषकर बालिकाओं के लिए पृथक शौचालय की उपलब्धता का दावा तो किया जा रहा है, किंतु स्थिति इसके बिल्कुल भिन्न है। पूरे प्रदेश में अभियान के माध्यम से स्कूलों में शौचालय तथा इसके उपयोग का भौतिक सत्यापन कराया जाना चाहिए और ध्वस्त पड़े अथवा अनुपयोगी शौचालयों का मरम्मत कर उसका उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

 

इसी सिलसिले में श्योपुर जिले के कराहल विकास खण्ड के परिणाम बहुत ही चौंकाने वाला है। यहां 264 विद्यालयों (प्राथमिक, माध्यमिक, छात्रावास तथा हाईस्कूल) में से 83 विद्यालयों (31 फीसदी) में पृथक तथा 136 विद्यालयों (51 फीसदी) में एकल शौचालय तथा 45 विद्यालय (17 फीसदी) शौचालय विहीन हैं। जो प्रधानमंत्री के इस बात को झुठलाते हैं, कि सभी विद्यालयों में बालिकाओं के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था कर दी गई है। जिन विद्यालयों में शौचालय उपलब्ध होना बताया जा रहा है, उसमें मात्र 77 विद्यालयों के शौचालय उपयोगी हैं; शेष 173 विद्यालयों के शौचालय अनुपयोगी है। 77 विद्यालयों में जहां शौचालय उपयोगी हैं, वहाँ पर 31 विद्यालयों में पानी की सुविधा नहीं है। जबकि सरकारी आँकडों के अनुसार विद्यालयों में स्वच्छता कवरेज 103 फीसदी है। ग्राम पंचायत भवनों में सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक जो मुख्य प्रेरणा के केन्द्र हैं, यहाँ भी शौचालय नहीं है यदि हैं भी, तो उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। लगभग 80 फीसदी पंचायत प्रतिनिधियों के पास शौचालय नहीं है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading