बच्चों की पहल से गाँव हुआ खुले में शौच से मुक्त

23 Oct 2015
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राजु कुमार

 

‘‘मेरा गाँव अब मुझे बहुत ही अच्छा लगता है। अब मैं किसी भी रास्ते पर निकलता हूँ, तो शौच नहीं दिखता। पहले सड़क किनारे, मैदान किनारे और तालाब किनारे हर जगह शौच दिखता था। नाक पर हाथ रखकर निकलना पड़ता था और गन्दगी से उबकाई आती थी।’’ 9वीं कक्षा में पढ़ने वाला बैतूल जिले के कुम्हली गाँव का लोकेश बारस्कर जब यह कहता है, तो उसके चेहरे पर खुशी साफ देखी जा सकती है। कुम्हली को खुले में शौच से मुक्त गाँव घोषित किया जा चुका है। 6वीं कक्षा की छात्रा कंचना धोटे बताती है, ‘‘पहले परिवार के साथ मैं भी खुले में शौच जाती थी। मुझे अच्छा नहीं लगता था, पर तब घर पर शौचालय नहीं था। मेरी शाला में पहले से ही शौचालय था। एक-दो बार मैंने घर पर शौचालय बनाने के लिए कहा, पर किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। जब गाँव में शौच के लिए बाहर जाने से रोकने के लिए अभियान चलाया गया, तब सभी ने जल्दी-जल्दी शौचालय बनवाएँ। गाँव के कई बच्चों ने अभियान में हिस्सा लिया। मुझे उस काम में बहुत मजा आया।’’

 

यूनिसेफ, मध्यप्रदेश के प्रमुख ट्रेवर डी. क्लार्क कहते हैं, ‘‘सामाजिक बदलाव में बच्चों की भूमिका अहम होती है। समुदाय आधारित समग्र स्वच्छता में बच्चों को सहभागी बनाना अच्छी पहल है। स्वच्छता के अभाव में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों को ही होता है। ऐसे में बच्चे पहल करें और घरों में या शालाओं में बेहतर स्वच्छता सुविधाओं की माँग करें, तो उसका सकारात्मक असर समुदाय पर पड़ता है।’’

 

समुदाय आधारित समग्र स्वच्छता अभियान के तहत कुम्हली के सरपंच एवं सचिव ने गाँव के बड़े लोगों के साथ-साथ बच्चों को इस कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। 132 परिवार वाले इस गाँव में पहले से 68 शौचालय बने हुए थे, कई परिवारों ने निजी स्तर पर शौचालय बनवाए थे। ऐसे में उन परिवारों ने इस पहल में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सबसे पहले गाँव में चौपाल लगाकर ग्रामीणों से सहयोग माँगा गया, जिसमें कई लोगों ने स्वच्छता समिति के सदस्य बनने के लिए अपनी सहमति दी। गाँव में पानी की ज्यादा परेशानी नहीं होने से लोगों को इसके लिए प्रेरित करना आसान था। गाँव में नल-जल योजना के माध्यम से सभी घरों में पानी की सप्लाई की जाती है।

 

पालकों एवं शिक्षकों की सहमति से गाँव में लड़कों की दो और लड़कियों की एक टोली बनाई गई, जिसने सीटी बजाकर खुले में शौच जाने वाले को रोकने का काम किया। सरपंच श्रीमती प्रीति बारस्कर कहती हैं, ‘‘बच्चों की तीनों टोलियों में आशा कार्यकर्ता, प्रेरक और स्वच्छता दूत को भी शामिल किया गया था। बच्चे जब सीटी बजाकर खुले में शौच जाने वालों को रोकते थे, तब समूह के वरिष्ठ सदस्य भी खुले में शौच जाने वाले को समझाते थे। कई बार असहज स्थिति बन जाती थी, पर चन्द दिनों में ही बहुत फर्क नजर आने लगा। एक ओर लोग तेजी से शौचालय बनवाने लगे, तो दूसरी ओर उसका उपयोग भी करने लगे। जिनके यहाँ शौचालय उस समय तक नहीं बन पाए थे, वे पड़ोसी या रिश्तेदार के शौचालय का उपयोग करने लगे।’’ 6वीं के छात्र मोहित बारस्कर का कहना है, ‘‘शुरू के 4-5 दिन कुछ लोगों ने हमारी बात नहीं मानी, तो उनका नाम पंचायत के बोर्ड पर लगा दिया गया। उसके बाद वे फिर खुले में शौच के लिए जाते हुए नहीं दिखे।’’

 

पंचायत सचिव जितेन्द्र सोनी बताते हैं, ‘‘ग्राम सभा ने खुले में शौच जाने पर जुर्माना भी तय किया था। इसके साथ ही खुले में शौच जाने वालों के नाम सार्वजनिक स्थल पर लिखने का काम किया गया। इसका गहरा असर हुआ और कुछ ही दिनों में लोगों ने शौच के लिए बाहर जाना छोड़ दिया।’’

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